*चोटिला का सफर: दोस्तों के संग*
हम सब दोस्तों की एक अजीब आदत थी। हर साल अक्टूबर महीने में नवरात्रि के दौरान हम चोटिला में स्थित चामुंडा माताजी के मंदिर जाते थे। हमारे इस ग्रुप में मैं, { आशिक, चिराग, हार्दिक, जिमित, राजेश, अमित और अल्पेश शामिल थे }। यह सफर हमारे लिए एक परंपरा बन गया था, जिसे हम साल दर साल निभाते आ रहे थे।
हर साल जून के महीने में हम इस यात्रा की तैयारी शुरू कर देते थे। सबसे पहले, हम सभी मिलकर यात्रा का प्लान बनाते और ट्रेन टिकट का पैसा जमा करना शुरू करते थे। जून के अंत तक हम सभी पैसे जमा कर लेते और जुलाई में टिकट बुक कर लेते। हालांकि, इस दौरान एक बड़ी समस्या हमेशा हमारे सामने आ जाती थी – अमित से पैसे निकालने की समस्या।
जिमित और अमित हर साल जून में पैसे जमा करने को लेकर सबसे ज्यादा मगजमारी करते थे। हालांकि, जिमित किसी न किसी तरह से पैसे जमा कर ही देता था, लेकिन अमित का मामला कुछ और ही था। अमित से पैसे निकालना किसी पहाड़ तोड़ने से कम नहीं था। हर बार वह तरह-तरह के बहाने बनाता और हम सबको परेशान कर देता।
जिमित एक कलाकार था जब उसके पास पैसे नहीं होते थे, तब वह हार्दिक को कैसे भी मना कर उसके पास से टिकट निकलवा लेता था। लेकिन हार्दिक को तब गुस्सा आता था जब जिमित समय पर हार्दिक को पैसे वापस नहीं करता था। और जब जिमित के पास पैसे होते थे, तब भी वह हार्दिक को देने के बजाय फालतू में खर्च कर देता था। दोनों में खींचतान देखने का एक अलग ही मज़ा था।
एक बार का किस्सा तो बहुत ही मजेदार था। जून का महीना चल रहा था और हम सभी ने तय किया था कि 30 जून तक सारे पैसे जमा कर लेंगे। 29 जून को जब हम अमित के पास पैसे लेने पहुंचे, तो उसने कहा, "यार, अभी मेरे पास पैसे नहीं हैं। अगले महीने की पहली तारीख को ही दे पाऊंगा।" हम सभी ने सिर पकड़ लिया। हार्दिक ने कहा, "अरे भाई, हर साल तू यही करता है। अबकी बार तो पैसे निकाल दे।"
अमित बोला, "सच में यार, इस बार तो मेरी हालत बहुत टाइट है।"
राजेश ने सुझाव दिया, "चलो, इस बार हम सब मिलकर थोड़ा-थोड़ा पैसा एडवांस में जमा कर देते हैं और अमित अगले महीने लौटा देगा।" यह सुनकर हम सबने सहमति दी और अपनी-अपनी जेब से पैसे निकाल कर जमा कर दिए। लेकिन यह भी तय हुआ कि अगर अगले महीने अमित ने पैसे नहीं दिए, तो उसे अगले साल का प्लान खुद ही बनाना होगा।
खैर, जुलाई में हमने टिकट बुक कर ली और अक्टूबर का इंतजार करने लगे। नवरात्रि के समय जब हम चोटिला पहुंचे, तो मंदिर के दर्शन करने के बाद हम सब मिलकर बहुत मस्ती करते थे। वहां का माहौल ही कुछ और होता था। माँ चामुंडा के दर्शन, मंदिर के आस-पास की चहल-पहल और हमारे ग्रुप की मस्ती – सब मिलकर एक अलग ही अनुभव देते थे।
इस साल भी हमने वही किया। मंदिर के दर्शन के बाद हम सब एक जगह बैठ कर बातें कर रहे थे। तभी हार्दिक ने हंसते हुए कहा, "यार, अमित का पैसा तो इस बार भी निकलवाने में बड़ा मजा आया। अगले साल फिर से यही करना पड़ेगा।" हम सब ठहाके मार कर हंस पड़े। अमित भी मुस्कुराते हुए बोला, "अरे भाई, मैं ऐसा जान-बूझकर नहीं करता। बस थोड़ा सा लेट हो जाता हूं।"
हम सबने अमित की बात सुनकर उसे छेड़ना शुरू कर दिया। जिमित ने कहा, "अमित, अगर इस बार फिर से तूने लेट किया, तो हम तुझे ट्रेन में छोड़कर खुद ही चले जाएंगे।"
अमित ने हंसते हुए वादा किया, "ठीक है, इस बार मैं सबसे पहले पैसे जमा करूंगा।"
हमारा यह सफर हर साल की तरह इस बार भी यादगार बन गया। नवरात्रि के दौरान चोटिला का माहौल, दोस्तों के साथ की मस्ती और चामुंडा माताजी के दर्शन – सब कुछ मिलकर हमें जीवनभर की यादें दे जाते थे। और इस सबके बीच अमित का पैसा निकालने की मगजमारी – यह तो हर साल की सबसे बड़ी और मजेदार चुनौती थी।
यही थी हमारी 2022 चोटिला की यात्रा की कहानी। हर साल की तरह इस बार भी हम सबने मिलकर बहुत मस्ती की और अगले साल फिर से इस यात्रा पर जाने का वादा किया। और इस बार, अमित ने भी वादा किया कि वह सबसे पहले पैसे जमा करेगा। अब देखते हैं, अगले साल यह वादा कितना सच्चा साबित होता है।
अमित का नाटक
अमित की आदतें सबको परेशान कर रही हैं। जब भी कोई योजना बनानी हो या कोई काम करना हो, अमित हमेशा अपनी शर्तें और नखरे दिखाने में सबसे आगे रहता है। अक्सर देखा गया है कि सभी लोग फोन पर बातचीत में आसानी से सहमति दे देते हैं और सब कुछ सकारात्मक होता है। हर कोई अपनी बात मानने को तैयार रहता है। लेकिन जब वास्तविकता में मिलने की बात आती है, तो अमित हमेशा कोई न कोई बहाना बनाता है या किसी ना किसी तरह से योजना को बिगाड़ने की कोशिश करता है।
अमित का यह रवैया उसके दोस्तों और सहकर्मियों को बहुत खलता है। उनकी यही शिकायत है कि जब सब लोग मिलकर काम करना चाहते हैं, तो अमित का सहयोग न मिल पाना पूरे माहौल को बिगाड़ देता है। उसकी नकारात्मकता और नखरे सभी को परेशान कर देते हैं।
दूसरी ओर, जिमित भी कुछ हद तक अमित जैसा ही है। जिमित भी कई बार अपनी नखरे दिखाता है, लेकिन वह अमित की तरह इतना जिद्दी नहीं है। वह कभी-कभी ही नाटक करता है, जबकि अमित का तो हर योजना में नखरे दिखाना ही मानो उसकी आदत बन गई है।
अमित और जिमित दोनों की ऐसी हरकतें उनके साथियों को निराश कर देती हैं। ऐसे में, जब सभी मिलकर कोई काम करना चाहते हैं, तो उनकी इस आदत से काम का माहौल बिगड़ जाता है। अमित को समझना चाहिए कि सहयोग और सामंजस्य से ही काम आसानी से हो सकता है। उसकी नकारात्मकता केवल रिश्तों में खटास और काम में रुकावट पैदा करती है। इसे बदलने की आवश्यकता है ताकि सब मिलकर सकारात्मक माहौल में काम कर सकें।
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