*चोटिला का आखिरी सफर: एक मजेदार कहानी*


हमारे ग्रुप में हर साल नवरात्रि के दौरान चोटिला के चामुंडा माताजी के मंदिर की यात्रा करना एक परंपरा बन गई थी। इस ग्रुप में मैं (आशिक), हार्दिक, जिमित, राजेश, चिराग, अमित और अल्पेश शामिल थे। हम हर साल जून में इस यात्रा की तैयारी शुरू करते थे, ट्रेन टिकट का पैसा जमा करते थे और जुलाई में टिकट बुक करते थे। लेकिन 2023 में कुछ ऐसा हुआ कि हमें अपने पारंपरिक ट्रेन सफर को बदलना पड़ा और बस से यात्रा करनी पड़ी।


2022 में हम सभी ने मिलकर चोटिला की यात्रा की थी। यह यात्रा बहुत ही यादगार थी। हम सभी ने मिलकर माँ चामुंडा के दर्शन किए, खूब मस्ती की और एक-दूसरे के साथ बिताए पलों का आनंद लिया। लेकिन 2023 में कुछ बदल गया। 


इस साल, कुछ कारणों से हमारे ग्रुप के कुछ सदस्य इस यात्रा में शामिल नहीं हो सके। मैं (आशिक) पहले से ही कहीं और जाने का प्लान बना चुका था, इसलिए मैं इस बार चोटिला नहीं जा सका। इसी तरह, चिराग को अपने परिवार के साथ कहीं और जाना था, और अल्पेश ने अफ्रीका में नौकरी जॉइन कर ली थी, इसलिए वह भी इस बार हमारे साथ नहीं था। 


फिर भी, राजेश, हार्दिक और जिमित ने इस बार चोटिला जाने का प्लान बनाया। इस बार उनके साथ एक नया सदस्य भी जुड़ा, जो हमारे ग्रुप में नया था। उन्होंने इस बार ट्रेन से नहीं बल्कि बस से जाने का फैसला किया। इस निर्णय के पीछे एक बड़ी वजह थी – ट्रेन टिकट का न मिलना। 


हर साल की तरह हमने जून में यात्रा का प्लान बनाया, लेकिन कुछ कारणों से इस बार प्लान में देरी हो गई। अमित, जो हर साल पैसे जमा करने में देरी करता था, इस बार भी वही कर रहा था। उसकी इस आदत की वजह से हमारे टिकट बुक करने में देरी हो गई। जब तक हमने टिकट बुक करने की सोची, तब तक ट्रेन में सीटें उपलब्ध नहीं थीं। 


इसके अलावा, हार्दिक और जिमित को गर्मी बिल्कुल पसंद नहीं थी। वे हमेशा एसी की सुविधा में ही सफर करना पसंद करते थे। ट्रेन की टिकट नहीं मिलने की वजह से हम सबने मिलकर विचार किया कि इस बार एसी बस से सफर किया जाए। एसी बस में सफर करने का एक फायदा यह था कि हम आराम से यात्रा कर सकते थे और किसी तरह की गर्मी का सामना नहीं करना पड़ेगा।


हमने एक एसी लग्जरी बस बुक की और अपने सफर की तैयारी शुरू कर दी। बस में सफर करने का एक अलग ही मजा था। हर कोई अपने-अपने सीट पर आराम से बैठा था और हमारे ग्रुप में हमेशा की तरह हंसी-मजाक का माहौल बना हुआ था। राजेश ने अपनी पुरानी कहानियों का पिटारा खोल दिया और हम सब उसकी बातों पर हंसते-हंसते लोटपोट हो गए।


सूरत में जब बस रुकी, तो मैं (आशिक) उनसे मिलने होटल पहुंचा। होटल में हमने साथ साथ में खाना खाया साथ में फोटो खींची और उसे ग्रुप में शेयर किया। जब अमित ने देखा कि मैं भी उनसे मिला हूं, तो वह थोड़ा नाराज हो गया क्योंकि वह इस बार यात्रा का हिस्सा नहीं था। उसकी नाराजगी जायज थी, लेकिन हम सबने उसे समझाया कि इस बार की देरी और उसकी आदतों की वजह से यह सब हुआ।




ग्रुप में पता था आशिक इस प्लान का हिस्सा नही हे लेकिन होटल का फोटो देख अमित का दिमाग हिल गया और कॉल कर के गाली देने लगा की तू जूठ बोला की तू नही जा रहा फिर वो लोग के साथ कैसे.


वो समझ ने को तयार ही नही की सूरत में होटल में मिले तो क्या आशिक था दिमाग खराब होते ही उसने अमित का कॉल काट दिया.


अमित का गुस्सा जायज था, लेकिन हमने सोचा कि हर बार की तरह इस बार भी उसकी बहानेबाजी और नखरे झेलने से बेहतर है कि उसे शामिल ही न किया जाए। जब उसने इस बारे में पूछताछ की, तो हार्दिक ने समझाते हुए कहा, "अमित, इस बार हमें लगा कि शायद तुम फिर से पैसे जमा करने में देर करोगे और प्लान कैंसल हो जाएगा। इसलिए हमने बिना तुम्हें बताये ही प्लान बना लिया।"


अमित ने नाराज़गी में जवाब दिया, "तो तुम लोग मुझे बता तो सकते थे। मैं इस बार सच्ची समय पर पैसे जमा कर देता।" जिमित ने भी शांत स्वर में समझाया, "अमित, तुम्हारे नखरे और बहानेबाजी से हम सब परेशान हो गए थे। इस बार हमें लगा कि बिना किसी रुकावट के यात्रा करनी चाहिए।"




यह सुनकर अमित थोड़ा शांत हुआ, लेकिन उसका गुस्सा पूरी तरह शांत नहीं हुआ था। उसने कहा, "ठीक है, लेकिन अगली बार मुझे जरूर शामिल करना।" हम सबने उसे वादा किया कि अगली बार ऐसा नहीं होगा।


हमारी बस यात्रा का अनुभव बहुत अच्छा रहा। एसी बस में सफर करने से न केवल हमें आराम मिला, बल्कि हमने सफर के दौरान बहुत सारी मस्ती भी की। मंदिर पहुंचकर हम सबने माँ चामुंडा के दर्शन किए और अपनी मनोकामनाएं मांगी। मंदिर के आसपास की चहल-पहल और वहां का माहौल हमें हर बार की तरह इस बार भी बहुत पसंद आया।


हमारे ग्रुप की इस यात्रा ने हमें यह सिखाया कि चाहे परिस्थितियां कैसी भी हों, हमें हमेशा एक-दूसरे का साथ देना चाहिए और समस्याओं का समाधान मिलकर निकालना चाहिए। इस बार का सफर भले ही ट्रेन की बजाय बस में हुआ, लेकिन हमारी मस्ती और दोस्ती में कोई कमी नहीं आई।


चोटिला की इस यात्रा में जब हम मंदिर पहुंचे, तो हर किसी के चेहरे पर एक अलग ही खुशी थी। माँ चामुंडा के दर्शन के बाद हम सबने मिलकर वहां के प्रसिद्ध पकवानों का स्वाद लिया। मंदिर की सीढ़ियों पर बैठकर हम सबने अपनी-अपनी कहानियां साझा कीं। 


हमारे दोस्ती के किस्से और मजेदार घटनाएं कभी खत्म होने का नाम नहीं लेतीं। हर साल की तरह इस बार भी हमने एक-दूसरे की खिंचाई की, हंसी-मजाक किया और उन पलों को जी भर कर जिया। 


यात्रा के अंत में हमने अगले साल फिर से चोटिला जाने का वादा किया और इस बार समय पर तैयारी करने की भी ठानी ताकि फिर से हमें ऐसी किसी समस्या का सामना न करना पड़े। 


इस यात्रा ने हमें यह सिखाया कि दोस्ती का असली मतलब क्या होता है। यह सिर्फ साथ में समय बिताना नहीं है, बल्कि एक-दूसरे के साथ खड़े रहना और हर पल को मजेदार बनाना है।


*लेखक: आशिक राठोड़*

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